हमको यूँ लगा जैसे हमें प्यार हो गया,
जाने कहाँ से दिल ये बेकरार हो गया.
उसका वो मुस्कुराना नजरों को झुका के,
ताउम्र के लिए मै गिरफ्तार हो गया.
कितना ये दिल सम्हालूँ काबू मे न रहा,
तेरे लिए धड़कने को तैयार हो गया.
उसकी जमानतों के मिश्रे मै क्या लिखूं?
उसका हर एक लफ्ज़ ही अशआर हो गया.
न काफिया,बहर न मालूम है रदीफ़,
इल्म-ए-अरूज़ बिन गजल से प्यार हो गया.
कोशिस तो खूब की बस अब न लिखूंगा,
फिर भी गजल मे राज़ ये अकबार हो गया.
‘’ऋषि’’ बोलने कि हिम्मत कब उससे करोगे,
कैसे कहोगे तुम पे दिल निसार हो गया.
अनुराग सिंह ''ऋषी''
6/01/2013
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