शनिवार, 5 जनवरी 2013

''बेबसी''


बहुत कुछ सोंच कर भी, कुछ न लिख पाया हूँ मैं,
लोगों की अहले नज़र पे, ही बहुत रोया हूँ मै,

क्या किसी अनजान कि, लड़की समझ के चुप हैं सब ?
या वो है मेरी बहन, बस इस लिए रोया हूँ मै ?

क्यों नही हक छीनते हैं, क्यों नही अपनी खुशी ?
इन सवालों के जवाबों, मे महज़ खोया हूँ मै,

मुल्क के इंसान जागो, कुछ कहो कुछ तो करो,
आज कि इस रात फिर से, क्यों नही सोया हूँ मै,

अब नही उनको है फुर्सत, लें खबर फाकाकाशों कि,
बस इन्ही फकाकाशों कि, भीड़ मे खोया हूँ मै,

ऋषि नही अधिकार है, इंसान को इज़हार का,
देश को फिर से गुलामी मे, समझ रोया हूँ मै.

अनुराग सिंह ''ऋषि''
05/01/2013

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