''हालात के दोहे''
मंहगाई सुरसा हुई, नेता हैं हनुमान
इन दोनों के बीच में, सिसक रहा इंसान
नेता जी का घर हुआ, दौलत की है खान
भारत के अखबार में, जाए भूख से जान
खा खा कर मोटे हुए, सरकारी दामाद
भारत माँ को जो करें, मिलजुल के बर्बाद
काला धन बिखरा पड़ा, चमक रहा परदेश
महानगर की झुग्गियां, भारत का शो केश
दिल्ली में कैसा मचा, देखो हाहाकार
कहाँ गई वो संस्कृति, क्या वो सब बेकार ?
नारी पूजा हो गई, गए दिनों की बात
अब तो नारी शक्ति पर, होते हैं आघात
क्या ये अपना रास्ट्र है, क्या ये अपना देश ?
रावण हैं फिरते जहाँ, बदल बदल के वेश.
अनुराग सिंह "ऋषि"
२१/१२/२०१२
बहुत खूब.....
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