मै फिर बचपन मे ढलना चाहता हूँ ,
समय अपना बदलना चाहता हूँ .
गए-बीते हुए वर्षों जिसे फिर ,
मैं अल्हड़पन से रहना चाहता हूँ.
वो गिरते भागते तितली के पीछे,
मै फिर फूलों मे खिलना चाहता हूँ.
दिखावे ने जो ले ली थी कभी,
मै वो सूरत बदलना चाहता हूँ.
वो मेरे गांव के खेतों की मेडे,
उन्ही मेंडों पे चलना चाहता हूँ.
बहुत पीछे जो छूटे थे कभी,
मै उन यारों से मिलना चाहता हूँ.
वो कुछ टूटे हुए छोटे खिलौने,
मै फिर उनसे बहलना चाहता हूँ.
कि जिस मिटटी मे थे लोटे कभी,
मै फिर माथे पे मलना चाहता हूँ.
कभी खाई थी कसमे साथ जिसके,
मै उसके संग चलना चाहता हूँ.
अंधेरों ने ''ऋषि'' है घेर रखा,
मै फिर दीपक सा जलना चाहता हूँ.
ऋषी सिंह (अनु )
25/12/2012
समय अपना बदलना चाहता हूँ .
गए-बीते हुए वर्षों जिसे फिर ,
मैं अल्हड़पन से रहना चाहता हूँ.
वो गिरते भागते तितली के पीछे,
मै फिर फूलों मे खिलना चाहता हूँ.
दिखावे ने जो ले ली थी कभी,
मै वो सूरत बदलना चाहता हूँ.
वो मेरे गांव के खेतों की मेडे,
उन्ही मेंडों पे चलना चाहता हूँ.
बहुत पीछे जो छूटे थे कभी,
मै उन यारों से मिलना चाहता हूँ.
वो कुछ टूटे हुए छोटे खिलौने,
मै फिर उनसे बहलना चाहता हूँ.
कि जिस मिटटी मे थे लोटे कभी,
मै फिर माथे पे मलना चाहता हूँ.
कभी खाई थी कसमे साथ जिसके,
मै उसके संग चलना चाहता हूँ.
अंधेरों ने ''ऋषि'' है घेर रखा,
मै फिर दीपक सा जलना चाहता हूँ.
ऋषी सिंह (अनु )
25/12/2012

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