मंगलवार, 10 जुलाई 2012

"दूरियां"



एक पल में हमें अपने से यूं दूर कर दिया,
जाने वो हमने कौन सा कसूर कर दिया,
पूजा था तुम्हे दिल मेरा मंदिर में बदल कर,
शायद  इसी ने तुमको कुछ मगरूर कर दिया,

हर पल में तुम्हे सोचा हर पल तुझे जिया,
हर एक पल में मांगी तेरे मिलने की दुआ,
सपने सुनहले देखे थे जो प्यार के कभी,
उस ख़्वाब को एक पल में तूने चूर कर दिया,

वादा था तेरा मुझसे की बिछडेंगे न कभी,
मर कर के भी दामन तेरा छोड़ेंगे न कभी,
तो क्या महज़ थे दिल्लगी झूठे तेरे वादे,
या ज़ख्म था कोई जिसे नासूर कर लिया,

गर ये सज़ा है मेरी तो मुझको क़ुबूल है,
पर सुन ले प्यार में भी ये मेरा उसूल है,
रहना पड़ेगा खुश तुम्हे यूं "ऋषि" से बिछड़ के,
जैसे  बुझे चिराग को गुलनूर कर दिया,

एक  पल में हमें अपने से यूं दूर कर दिया,
जाने वो हमने कौन सा कसूर कर दिया.

ऋषी
१०/०७/२०१२

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