किसी न किसी बहाने जो
मेरी इस गुमसुम दुनिया की
बेचैनी पहचाने जो
तन्हाई में अश्क गिरा कर
बेचैनी पहचाने जो
तन्हाई में अश्क गिरा कर
खुद को और जला लेता है
बस मुझको ही बहलाने को
गाता नए तराने वो
खुद तो हंसना भूल गया है
पर देता है एक सजा
मुझको दिखलाने की खातिर
मुझको दिखलाने की खातिर
लगता है मुस्काने वो
मेरे मन की वीरानी मे
एक न आहट और हुई
आँखे झूठा रस्ता देखें
लौटेगा कब जाने वो
एक राज़ की बात बताऊँ
ये हैं मेरे गीत नहीं
ऋषि तो बस लिखता जाता है
ऋषि तो बस लिखता जाता है
वो गाता अफ़साने जो
अनुराग सिंह **ऋषी**

nyc dude.....
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