मुसलसल इक ठिकाना चाहता है
ये दिल अब आशियाना चाहता है
किसी के प्यार पर इतना भरोसा?
वो शायद टूट जाना चाहता है
मुझे डर है की मैं न डूब जाऊं
समन्दर पास आना चाहता है
ज़माने भर के बैठाये हैं पहरे
परिंदा एक दाना चाहता है
हज़ारों महफिलें लूटीं हैं हमने
वो मेरा दिल चुराना चाहता है
मैं लावारिस हूँ ये ऐलान कर दो
वो मुझपे हक़ जमाना चाहता है
अनुराग सिंह "ॠषी"
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