गुरुवार, 16 मार्च 2023

"हम गुजर जायेंगे"


 हादसों की तरह हम गुजर जायेंगे

इक समय आएगा हम भी मर जायेंगे


इक जमाना हुआ हम चले जा रहे

चलते चलते ही इक दिन ठहर जायेंगे


तुम न रोना सुनो मेरी खातिर कभी 

आंख तुम मूंदना हम नजर आएंगे 


आसरा तुम किसी का न देखो कभी

इंतजामात ऐसे भी कर जायेंगे


बारहा इस कदर अब न देखो हमे

जाते जाते भी हम प्यार कर जायेंगे


कुछ खिलौने किताबे कलम ले ही लूं

सोचते हैं कि इक रोज घर जायेंगे


कोई दौलत नही ये करम हैं मेरे

ये उधर आयेंगे हम जिधर जायेंगे


आदतन आदमी सोचता है यही

आज पी लें ओ कल से सुधर जाएंगे


जिंदगी की हकीकत हमे है पता

क्या बताएं कि बस आप डर जायेंगे


ये है दुनिया "ऋषि" इक बपौती नहीं

ये ही सच है कि इक रोज मर जायेंगे


अनुराग सिंह "ऋषी"

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

इक और बनता हुआ पाकिस्तान


 हर तरफ धर्मान्धता, दौड़ते कूपमण्डूक लोग 

और कुचले हुए इंसान

मैं देख सकता हूँ 

इक और बनता हुआ पाकिस्तान.......


जहां मासूम चीखें दब जाती हैं काल्पनिक घंटों घड़ियालों के शोर में

जहाँ देखी जाने लगी है हर नकारात्मक घटना हरे चश्मे से

आज इस दौर में....... 


हर गली नुक्कड़ चौराहे पर लगवा दिए गए हैं कुछ ज़िंदा यंत्र

जहां से छापे जाते हैं देशभक्ति के प्रमाणपत्र

 साथ ही फूंके भी जाते हैं चुनावी जीत के मंत्र


हाँ दुखद है, गलत है, आपत्तिजनक है पर मजबूर है हर इंसान

बरबस ही चुपचाप बस देखता हूँ

एक और बनता हुआ पाकिस्तान ........


चित्र- गूगल से साभार


अनुराग सिंह "ऋषी"

19/10/2021

बुधवार, 16 सितंबर 2020

"विश्व गुरु बनने की हर तैयारी है"




भूख, गरीबी, चोरी है, बीमारी है

विश्व गुरु बनने की हर तैयारी है


रोजगार के ओछे मुद्दे मत छेंड़ो

विकसित होने की जड़ ही बेकारी है


भूंख लगी है? सबको बोलो सब्र करें

जल्दी वादा बंटने की तैयारी है


लालकिला, स्टेशन, अड्डे बेंच दिए

खाली नेता बचा यहां सरकारी है


रामराज्य तो एक दिन में ले आएंगे

पहले रावण लाने की तैयारी है


जो भी सत्ता में आता है खाता है

इसमे क्या? इस बार तुम्हारी बारी है


कुछ भक्तों का अक्सर ऐसा लगता है 

मुझको उल्टा दिखने की बीमारी है


अनुराग सिंह "ऋषी"


चित्र: गूगल से साभार 

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

नज़्म- ज़िन्दगी



ज़िन्दगी अब वो ज़िन्दगी न रही...
अब तो लम्हों को काटा जाता है...
जैसे करता है नौकरी कोई...
बेसबब रोज ही खामोशी से...
फ़र्ज़ की बेड़ियों में जकड़े हुए...
सांस दर सांस कैदियों की तरह...
और फिर दिन... महीने... साल कई...
वक़्त के साथ बीत जाते हैं...
और आगे का कुछ ख्याल नही...
मौत की राह ताकी जाती है...
ज़िन्दगी अब वो ज़िन्दगी न रही...

अनुराग सिंह "ऋषि"

चित्र- गूगल से साभार

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

"ठहर गया हूँ मैं"



ज़िन्दगी क्यों ठहर गया हूं मैं
मुझको लगता है मर गया हूँ मैं

कोई हसरत नही रही बाकी 
सच कहो क्या गुज़र गया हूँ मैं

ज़र्द चेहरे को देख कर मेरे
लोग समझे निखर गया हूँ मैं

सेहरा-ए-दर्द था मज़ाक नही 
कैसे भी पार कर गया हूं मैं

मैं भी खुदरंग वक़्त था साहब
हाँ मगर अब गुज़र गया हूँ मैं

हां तेरी रुखसती के बाद सही 
जैसे तैसे सुधर गया हूं मैं

अनुराग सिंह "ऋषि"

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

"भय"




दिन भर की अथक मेहनत से
थक कर लाल हो चूका
दक्षिण पश्चिम का आसमान...
करता है आश्वस्त
की लो बीत गया आज का दिन भी सुरक्षित...
पर खतरा अभी टला नही आज की तारीख का
सोचता है राह का पथिक
क्यों की रात्रि के खाते में ही होते हैं दर्ज
कई अप्रत्याशित अमूर्त क्षण
नगरों की परिपाटी में...
अमूर्त क्षण...जिनके मूर्त होने का भय
सबसे मुख्य अवयव है
आदमी को इंसान बनाये रखने का
...ऋषी

सोमवार, 13 नवंबर 2017

विदा




आखिरी वक़्त आ गया साथी
हमको होना है अब जुदा साथी

अब से अपना ख्याल रख लेना
और बोलूं भी मैं तो क्या साथी

मैं तुम्हारी ख़ुशी तराशुंगा
तुम भी करना कहीं दुवा साथी

अब नई जिंदगी सहेजो तुम
साथ इतना ही था लिखा साथी

कुछ भी तो तुमको दे नही पाया
तुमने सब कुछ मुझे दिया साथी

मैं भी खुद को कहीं खपाउंगा
तुम भी देना मुझे भुला साथी

रुखसती मौत सी मुअय्यन है
आज लेता हूँ मैं विदा साथी

अनुराग सिंह "ऋषी"
12/11/2017
चित्र- गूगल से साभार