मुहब्बत के सारे नज़ारे मिलेंगे
तेरे दामनों में सितारे मिलेंगे
कभी देखना जब दुवा चाहिए हो
उठे हाँथ ऊपर हमारे मिलेंगे
हकीकत तुम्हे जो मैं अपनी बताऊँ
कई ख़्वाब टूटे हमारे मिलेंगे
मुहब्बत ना करना, मुहब्बत न करना
यहाँ सिर्फ किश्मत के मारे मिलेंगे
हकीकत सियासत की तुम जानते हो
वहां बस तरक्की के नारे मिलेंगे
छलांगें लगाओ तो सूरज तलक की
जो चुके तो फिर भी सितारे मिलेंगे
बुढापे की लाठी "ऋषी" बन के देखो
तुम्हे खुद-ब-खुद ही सहारे मिलेंगे
अनुराग सिंह "ऋषी"
15/03/015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें