मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

"खुद को ही आजमाऊं मैं"






यार क्या कह दूँ क्या छिपाऊं मैं
दर्द-ए-दिल किस तरह सुनाऊं मैं

चोट इतनी की दम निकल न सके
दर्द इतना की जी ना पाऊं मैं

किश्मतों पर नहीं यकीन मुझे
क्यूँ न खुद को ही आजमाऊं मैं

हाँ बुलंदी तो छीन ही लूँगा
पहले पर ठोकरें तो खाऊं मैं

शौक से रोकना मुझे लेकिन
पहले हद के तो पार जाऊं मैं

तुझमे जीना ही ज़िन्दगी है “ऋषी”
और क्या ज़िन्दगी बताऊँ मैं

अनुराग सिंह “ऋषी”
 13/10/2015

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