सोमवार, 9 मार्च 2015

"आशिकी के पार"





कभी तुम आशिकी  के पार देखो
रही है जिंदगी जो हार देखो

है बचपन सो रहा भूखा कहीं पे
ज़रा तुम भूख की ललकार देखो

जरूरत से हुआ महंगा कफन है 
ये कैसी मुफलिसी कि मार देखो

गरीबी ख़त्म ही करके रहेंगे
ये नारे दे रही सरकार देखो

ये कैसी सोंच है हमने बनाई
कि बेटी बन गई है भार देखो

जो काटे हिन्दू ओ मुस्लिम सभी को
जुबां के साथ उसकी धार देखो 


अनुराग सिंह "ऋषी"
10/03/2015

(चित्र गूगल से साभार)

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