हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है
खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है
हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद
मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है
कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने
वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है
सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला
हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है
इबादतों का "ऋषी" वक्त जो बांटूं भी तो
हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है
अनुराग सिंह "ऋषी"
24/04/2014
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