मंगलवार, 24 जून 2014

"अभिलाषा"





मै हर मंजिल को पाना चाहता हूँ

ज़माने को दिखाना चाहता हूँ 

सहारों की जरूरत अब किसे है
मै खुद को आजमाना चाहता हूँ  

ये दर्द-ए-जिंदगानी ही है जिसको
मै ग़ज़लों में सुनना चाहता हूँ 


वो बचपन की बड़ी भोली सी चाहत
मै फिर से चाँद पाना चाहता हूँ 

नही ममता है ईंटे पत्थरों में
मै फिर से घर पुराना चाहता हूँ 

कई रातें कटी हैं सिसकियों में
मै फिर से गुनगुनाना चाहता हूँ

ये दुनिया भूल जाती है सभी को
मै लफ़्ज़ों में समाना चाहता हूँ 


ये जीवन रुक नही सकता "ऋषी" बिन
किसी को ये जताना चाहता हूँ


 
अनुराग सिंह "ऋषी"
24/06/2014

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