पाखंड से अपने यूँ जरा बाज़ आइये
भाषण न यहाँ भीड़ को झूठा सुनाइये
अब जग गया है मुल्क इसे जान लें नेता
नाहक न अब विपक्ष कि कमियां गिनाइये
गैरत ज़रा भी बाकी तो छोड़ो ये पैंतरे
ताबूत रहने दीजिये, चारा न खाइए
वादों से मिलते वोट ये हर बार सोंच कर
बंगलों में अब न बैठिये करतब दिखाइये
है ऐश की आराम की तुमको कमी कहाँ
बेकार धूल धूप में मिलने न आइये
हर शौक पूरा कीजिए जाने ये कब मिले
दारू उठाइये ज़रा चखना उठाइये
ये लोकतंत्र है “ऋषी” सरकार है जनता
जाकर किसी को और ही उल्लू बनाइये
अनुराग सिंह “ऋषी”
12/04/2014
चित्र --> गूगल से साभार
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