गुरुवार, 16 जनवरी 2014

"कागज़ी टुकड़े"




कुछ कागज़ी टुकड़े
आज भी मिल जाते हैं
सफाई के दौरान
धुल से सने हुए
जिनमें बसती है महक
किसी की बातों की
प्रेम की, सीलन की
जो बस जाती है उँगलियों में
जिन्हें पकड़ वर्तमान खीचता है
भूत की ओर
फिर न चाहते हुए भी
दो बूँद से किस्मत धोने की कोशिस
और खुद से छिपा के
वापस रख देता हूँ
अगली सफाई के लिए
वो कागज़ी टुकड़े
जिनमे बसती है महक
तुम्हारे प्रेम की ...............

अनुराग सिंह "ऋषी"
17/01/2014

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