प्यार जिससे भी आप करते है
जिसकी खातिर सदा संवरते हैं
ख़्वाब में सामने भी आये तो
कुछ भी कहने में आप डरते हैं
जितना ज्यादा हैं सोचते उनको
वैसे वैसे ही वो निखरते हैं
इस सियासत के दांव पेंचों में
कितने मासूम हैं जो मरते हैं
आशिकी का यही उसूल रहा,
करती नजरें है आप भरते हैं
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं
अनुराग सिंह "ऋषी"
जिसकी खातिर सदा संवरते हैं
ख़्वाब में सामने भी आये तो
कुछ भी कहने में आप डरते हैं
जितना ज्यादा हैं सोचते उनको
वैसे वैसे ही वो निखरते हैं
इस सियासत के दांव पेंचों में
कितने मासूम हैं जो मरते हैं
आशिकी का यही उसूल रहा,
करती नजरें है आप भरते हैं
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं
अनुराग सिंह "ऋषी"
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