गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

"हमको खराब रहने दे"



मेरी आँखों में जरा देर ख्वाब रहने दे
महफिलें बीत गयीं पर शबाब रहने दे

यूँ तो हर एक सवाली है खोजता हमको
ज़रा ही देर सही लाज़वाब रहने दे

हंसी होठों पे रहे और ये सिसकना तन्हा
मेरे चेहरे पे खुदा ये नकाब रहने दे

नशे में डूबने हम मयकदे को क्यों जाएँ
तेरी आँखें ही बहुत हैं शराब रहने दे

गुनाह अपने तू सारे छुपा ले दुनिया से
जो हम खराब हैं हमको खराब रहने दे

दुबारा इश्क में जाए “ऋषी” मज़ाल नही 
चलो अब छोड़ दे हमको ज़नाब, रहने दे

अनुराग सिंह “ऋषी”
4/08/2013

1 टिप्पणी:

  1. आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 16/12/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
    सूचनार्थ।

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    अभी तो इस मंच का अंकुर ही फुटा है, हमारा आप सब का प्रयास, प्रचार, हिंदी से स्नेह, हमारी शक्ति तथा आत्मविश्वास ही इसेमजबूति प्रदान करेगा।
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