बुधवार, 6 नवंबर 2013

"मेरा मुल्क "





युवा इस देश का जो आज हर घटना समझता है
बड़े बूढों कि खातिर आज भी हटना समझता है

उठाए मुल्क कि खातिर कभी हथियार जो इसने
पड़े पीछे ना तिल भर ये कदम हटना समझता है
 
यहाँ इज्ज़त नही होती बहन बेटी कि गहनों से
,
ये मेरा मुल्क है इज्ज़त को ही गहना समझता है

ये कैसी सोंच बनती जा रही है आज इंसां की ,
खुली आँखों के ख्वाबों को महज सपना समझता है

वो बिछड़ा भाई है जो हर समय बरबादियाँ चाहे
ये भारत देश है जो आज तक अपना समझता है

नही हिंदू नही मुस्लिम न केवल सिक्ख ईसाई
ये हिंदुस्तान है हर एक को अपना समझता है
 
पुकारे जब कभी माँ भारती कैसा समय जाया
फकर की बात है ये सर तलक कटना समझता है 

अनुराग सिंह "ऋषी"
06/11/2013


चित्र --> गूगल से साभार

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