रविवार, 28 जुलाई 2013

''कहानी लिखूं"



 


मै वो बचपन लिखूं या जवानी लिखूं
या तेरे प्यार कि मै निशानी लिखूं

थक गयी आँख खुद को भिगोते हुए
मै वो आँखों का सूखा जो पानी लिखूं

प्रेम के रूप देखे हैं हमने कई
मीरा बाई या राधा दिवानी लिखूं

आज नारी दशा देख दिल ने कहा
दुर्गा, काली या माता भवानी लिखूं


खो गई सभ्यता है जो पीछे कहीं
मै उसी सभ्यता कि कहानी लिखूं

लोग सदियों तलक गुनगुनाएं जिसे
मै गज़ल कि वो प्यारी रवानी लिखूं

इससे ज्यादा “ऋषी” हो सके जो सही
मुल्क के नाम ये जिंदगानी लिखूं

अनुराग सिंह “ऋषी”


03/06/2013

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें