शनिवार, 13 जुलाई 2013

"हक जताता है"





कभी सपने सज़ाता है कभी आंसू बहाता है
खुदा दिल चीज़ कैसी है जो पल में टूट जाता है

मेरी ज़र्रा नवाज़ी को न कमज़ोरी समझना तुम
अदाकारी परखने का हुनर हमको भी आता है

ये उठते को गिराता है ये गिरते को उठाता है
अरे ये वक्त ही तो है सदा हमको सिखाता है

जो ज़ेरेख्वाब ही मदमस्त हो अपने लिए जीता
ये आदमजात है भगवान को भी भूल जाता है

मै रोऊँ या हंसूं मंज़ूर पर उसको ही लेकर के
भला क्यों आज भी हम पर वो इतना हक जताता है

अदा-ए-दिल्लगी उसकी “ऋषी” दिल जीत लेती है
मुझे जब सामने कर के मेरी गज़लें सुनाता है 

अनुराग सिंह “ऋषी”
01/07/2013

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