वो कभी जब तुम्हारा इशारा हुआ
मै मुहब्बत का गहरा किनारा हुआ
रोई हैं आँखे कितनी जला दिल लिए
तब कहीं ये समन्दर है खारा हुआ
अंत मेरा समन्दर में है शब्द के
बस नदी कि तरह एक धारा हुआ
एक ही बात दिल को रही छेदती
मै जो सबका हुआ न तुम्हारा हुआ
गीत ग़ज़लें सदा गुनगुनाता चला
मै पथिक जिंदगी एक हारा हुआ
बूढ़ा भारत सदा बस रहा गाँव में
है सदा मुफलिसी का जो मारा हुआ
मै जो रोशन हूँ इसको चमक ना समझ
आसमां का मै टूटा सा तारा हुआ
अनुराग सिंह "ऋषी"
3/06/2013
चित्र - साभार गूगल से
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