मुझसे मेरी हयात ऐसी दिल्लगी करे
मंजिल का मेरी फैसला आवारगी करे
तुझसे भी हैं ज़रूरी दुनिया में और काम
सब को भुला के कौन तेरी बंदगी करे
बेपीर बेमुरव्वत मुझसे न पूंछ कुछ भी
मेरा बयान-ए-हाल ये बेचारगी करे
मुद्दत से थोड़े ख्वाब सहेजे हैं आँख में
की इंतज़ार-ए-आब जैसे तिश्नगी करे
हर रोज सबसे छुप कर किसकी हैं ये दुआएं
शामों में आफताब सी ताबिन्दगी करे
रोऊँ तो ये हंसाए, हँसता हूँ तो रुलाए
मुझको यूँ परेशान मेरी जिंदगी करे
हैं गुम कहाँ उजाले खुशियों के संग बोलो
“ऋषि” से यही सवाल घर की तीरगी करे
अनुराग सिंह “ऋषी”
29/06/2013
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