सोमवार, 10 जून 2013

"शुक्रिया"



यूँ पाठ जिंदगी का, पढ़ाने का शुक्रिया
की बेरुखी से मुझको, भुलाने का शुक्रिया


गुज़रे हुए निशान कुछ, रेती पे पैर के
यादें यूँ अपनी छोड़ के, जाने का शुक्रिया


कोई तो चाहिए ही था, इक हमसफ़र तुझे
दिल में किसी को और, बसाने का शुक्रिया


रातों से हो गयी है, मुहब्बत सी अब हमें
ख्वाबों में ही दीदार, कराने का शुक्रिया


दिल मोम का है सोंच के, रोता रहा सदा
पत्थर कि तरहा दिल को, बनाने का शुक्रिया

मुझको लगा ये काफ़िला, मेरे ही साथ है
अब तक यूँ मेरे साथ में, आने का शुक्रिया


हसरत नही कि जिंदगी, ताबील हो “ऋषी” 
दो पल ही सही साथ, निभाने का शुक्रिया

अनुराग सिंह “ऋषी”
10/6/2013

चित्र ---> गूगल से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें