मंगलवार, 28 मई 2013

"अस्तित्व"




आज भी ढूँढता रहता हूँ तुम्हे पागलों कि तरह 

हाँ बिलकुल पागलों कि तरह 

देता रहता हूँ मै 

खुद को ही झूठी सांत्वना 

कैसे मिटा दूँ ये यादें ?

जिनमे बसते हो तुम 

मै हूँ किसी उजाड सूखे पेंड़ सा

और यादें हैं हरी बेलों कि तरह

जिन्होंने बचा रखा है मेरा अस्तित्व


हरा रहने का 


जो लिपटती हैं मुझसे ठीक ऐसे 


जैसे तुम पास आते ही 


करती थी एक मदभरा आलिंगन


और छु हो जाती थी 


सारी शिकन और तकलीफें


ढेरों दिन हैं बाकी  

 
अभी तो बरसात आने में


डर लगता है 


समय कि बेरहम धूप


सुखा न दे याद की उन बेलों को 


जिनसे है मेरा अस्तित्व 


अस्तित्व जो शायद हो कर भी नही है 


या नही होकर भी है 


पर कुछ तो है जिसने 


बचा रखा है मुझे अभी भी 


शायद वही यादें 


या कोई दिलासा 


जो जो तुम देकर गयी हो


याद है तुम्हें ?.........................अनुराग सिंह “ऋषी”

29/05/2013


चित्र ---> गूगल से साभार

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