जिधर देखता हूँ नशा ही
नशा है
इधर कहकशा है उधर कहकशा है
कई रोज तूफान को झेल कर के
जहाज़ी ये साहिल पे आकर फंसा है
भले सांप सारे हैं अपने बिलों में
मेरे मुल्क को कुर्सियों ने डसा है
ज़रा मुल्क का अपने नक्शा उठाना
बताना कहाँ आज भारत बसा है
नहीं कोई दुश्मन रहा दोस्त होगा
जो ये तीर सीने में आकर धंसा है
समझ लो सही राह चुन के चला वो
ज़माना “ऋषी” जो किसी पर हंसा है
इधर कहकशा है उधर कहकशा है
कई रोज तूफान को झेल कर के
जहाज़ी ये साहिल पे आकर फंसा है
भले सांप सारे हैं अपने बिलों में
मेरे मुल्क को कुर्सियों ने डसा है
ज़रा मुल्क का अपने नक्शा उठाना
बताना कहाँ आज भारत बसा है
नहीं कोई दुश्मन रहा दोस्त होगा
जो ये तीर सीने में आकर धंसा है
समझ लो सही राह चुन के चला वो
ज़माना “ऋषी” जो किसी पर हंसा है
अनुराग सिंह "ऋषी"
25/05/2013
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