रविवार, 30 दिसंबर 2012

''हक की लड़ाई''

हम खड़े हैं हाँथ फैलाए हुए,
हैं युवा भी आज झुंझलाए हुए,
है नही सामर्थ्य कि हक छीन लें,
हम पथिक हैं राह भटकाए हुए.

दामिनी कितनी यहाँ कुर्बान हों,
बेटियाँ कितनी यहाँ नीलाम हों,
कुछ दिनों के ताव मे आये हुए,
हम पथिक हैं राह भटकाए हुए.

कुछ समय के बाद सब थम जाएगा,
फिर न कोई बेवजह चिल्लाएगा,
हम चलेंगे फिर से इठलाए हुए,
हम पथिक हैं राह भटकाए हुए.

गर कहीं अपने पे बीती तो कभी,
हम गला फाड़ेंगे बस कुछ भी नही,
क्यों नही हैं आज सब आये हुए,
हम पथिक हैं राह भटकाए हुए.

मै तो कहता हूँ ''ऋषी'' हक छीन लो,
खींच लो धरती पे उनको खींच लो,
कुर्सियों मे पैर अटकाए हुए,
हम पथिक हैं राह भटकाए हुए.

अनुराग सिंह  ''ऋषी''
31/12/2012

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