गुरुवार, 5 अगस्त 2010

स्वाती

मैँ न जाने क्योँ यूँ जगता हूँ अकेले रात मेँ,
ढूँढता हूँ मैँ न जाने क्या घनी बरसात मेँ।
शब्द से जाने नहीँ क्यूँ बन रही अब बात है,
लाऊँ अब मोती कहाँ से इस अँधेरी रात मेँ॥
बन पपीहा मैँ फसा मजबूरियोँ की रेत मेँ,
गिर चुकी "स्वाती" को अब हूँ ढूढता सैलाब मेँ॥
मैँ न जाने क्योँ यूँ जगता हूँ अकेले रात मेँ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. Rakh hausla wo manzar bhi aayega…
    Pyase ke paas chal k samandar bhi aayega
    Thak kar na Baith aye manzil k musafir…
    Manzil bhi milegi aur milne ka maza bhi aayega......

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