ज़िन्दगी अब वो ज़िन्दगी न रही...
अब तो लम्हों को काटा जाता है...
जैसे करता है नौकरी कोई...
बेसबब रोज ही खामोशी से...
फ़र्ज़ की बेड़ियों में जकड़े हुए...
सांस दर सांस कैदियों की तरह...
और फिर दिन... महीने... साल कई...
वक़्त के साथ बीत जाते हैं...
और आगे का कुछ ख्याल नही...
मौत की राह ताकी जाती है...
ज़िन्दगी अब वो ज़िन्दगी न रही...
अनुराग सिंह "ऋषि"
चित्र- गूगल से साभार
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