शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

"मेरी ग़ज़लों को जब पढ़ा जाय"




मेरी गज़लों को जब पढ़ा जाए
नाम उनका भी ले लिया जाये

ग़ज़लें उनकी हों शेर मेरे हों
बांटना इस तरह किया जाए

यूँ तो मशहूर हो नही पाया
मुझको बदनाम कर दिया जाए

मै ज़माने में ढल नही पाया
मुझको इंसानियत न खा जाए

बारहा यूँ न देखिये हमको
जान भी कितनी मर्तबा जाए

आज उनको भी इश्क सूझा है
कोई सदमा है, क्या कहा जाये

वक्त मेरा खराब आया है
जिसको जाना है वो चला जाए

रश्म-ए-आखिर में मर्सियाँ न हों
नाम उनका “ऋषी” लिया जाए 

अनुराग सिंह "ऋषी"
27/10/2015

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