शुक्रवार, 10 मई 2013

"तेरी याद आयी"





आज फिर मुझको सताने को तेरी याद आयी,
तुझसे महरूम दीवाने को तेरी याद आयी,

दिल-ए-मासूम पे इस दुनिया ने ढाए जो सितम,
दर्द दिल के ही भुलाने को तेरी याद आयी,

मन को बहलाना और समझाना है नही आसां,
मुझे ये राज़ बताने को तेरी याद आयी,

उसकी यादें ही मेरी आखिरी अमानत हैं,
हमें शायद ये जताने को तेरी याद आयी,

हम भले मुस्कुराए है सदा ही महफ़िल में,
मगर इस मन के विराने को तेरी याद आयी,

पहरों ख्वाबों को बुलाता हूँ आँख बंद किए,
मेरे मासूम बहाने को तेरी याद आयी,

टूटे ख्वाबों को खुद में ज़ज्ब किए बैठी है,
मुझे फिर आज रुलाने को तेरी याद आयी, 

तेरे ही साथ बैठ हमने जो लिखी थी कभी
वो गज़ल आज सुनाने को तेरी याद आयी,

कतरा कतरा ही सही मर तो हम रहे हैं “ऋषी”
फिर एक कतरे को जलाने को तेरी याद आयी.

अनुराग सिंह “ऋषी”
5/05/2013

चित्र ---- गूगल से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें