मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

''शिकवे''




आज फिर धुप नही निकली है, देखो फिर काली घटा छाई है
आज तक इन्त्जार था जिसका, अभी शायद वो घड़ी आई है

वो बिन बताए ही जाने का गिला, पलट के देख न आने का सिला
गमो को बाँध कर वो आँचल से, न जाने कितने शिकवे लाई है 

इन आलिशान खड़े बंगलों से, मगर इंसानियत में कंगलों से
इन अमीरों से कोई तो पूछे, हाय कितनी यहाँ मंहगाई है

वो अपने दिल कि बात कहने पे, न सियासत के जुर्म सहने पे  
सियासती रंगे सियारों ने, सदा औकात ही दिखाई है  
 
दिल-ए-मासूम के ख्याल जहाँ, हैं कुछ अबोध से सवाल वहाँ
गज़ल ‘’ऋषी’’ कोई मुराद नहीं, ये दिल से निकली रोशनाई है

अनुराग सिंह ''ऋषी''
27/02/2013

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