मंगलवार, 29 जनवरी 2013

''बदलाव''




कभी-कभी तन्हाई की आवाज सुनाई देती है
कभी-कभी इक सोई सी
, हसरत अंगड़ाई लेती है

दुनिया के इन तौर तरीकों के डर से सहमी-सहमी
एक भोली पर सच्ची सी
, सूरत दिखलाई देती है

दिल वालों की दिल्ली में अब पत्थर दिल हैं लोग यहाँ
बेमतलब के मुद्दों की
, घंटों सुनवाई होती है

इस बदली दुनिया के है बदले-बदले क़ानून अभी
जो जितना है वफादार
, उतनी रुसवाई होती है

गाँवों में अब खेत नही ‘‘ऋषि’’ कंक्रीट के जंगल हैं
अब बंशी की गूँज नही
, तनहा पुरवाई होती है

अनुराग सिंह ‘‘ऋषी’’
27/01/2013

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