इस मतलब की दुनिया में हम, आ कर के हैरान रहे
गिन के कुछ दिन ख्वाब सुनहरे, मेरे भी मेहमान रहे
दूजों पर तो रहा भरोसा, इस जीवन में कुछ हद तक
अपनों की चोटों से ही हम, आज तलक हलकान रहे
जिस घट पर आकर के दुनिया, रोती और ठहरती है
हम अपने लोगों की खातिर, वैसा ही शमशान रहे
दर्द छुपाए दुनिया भर के, सब कुछ सह के हँसते हैं
पर बेदर्दी दुनिया की, हम नज़रों में अनजान रहे
इस चमकीले झूठे जग की, झूठी रश्में मीठे बोल
इस मिठास में घुलने की, कोशिस में हम नादान रहे
एक खुशी जो अभी तलक है, और साथ है एक सुकूं
इन शूलों के बीच घिरे हैं, फिर भी हम इंसान रहे
अनुराग सिंह ''ऋषी''
22/01/2013
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