रविवार, 20 जनवरी 2013

''जिक्र''




 


जिक्र जिसका मेरे इन ख्यालों मे है
मै अंधेरों मे हूँ वो उजालों मे है


आशियाना हमारा जहाँ मे नही
मै जवाबों मे हूँ वो सवालों मे है

वक्त की दास्ताँ गर बयां है कहीं
इस मकां के पुराने से जालों मे है


संगमरमर कि बेजान मूरत नही
नाम उसका जहाँ से निरालों मे है

इश्क में सच कहें कुछ मिला भी नहीं
जिंदगी कट रही अब निवालों में है


उसकी तारीफ़ मे ''ऋषि'' गजल क्या लिखे
वो मुहब्बत कि उम्दा मिशालों मे है


अनुराग सिंह ‘‘ऋषि’’  ©
20/01/2013
चित्र -- गूगल से साभार

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