बुधवार, 15 मई 2013

"मुस्कुराते रहे"










अश्क आते रहे, हम छिपाते रहे
दर्द उठता रहा, हम दबाते रहे

तुमने सुन कर के भी, अनसुना कर दिया
हम तुम्हारी गज़ल, गुनगुनाते रहे

मन भी तेरा रहा, तन भी तेरा रहा
गीत अपने बचे, जिनको गाते रहे

ज़ख्म पे ज़ख्म देता रहा, हर कोई   
फिर भी क्यों बेवजह, मुस्कुराते रहे

मेरे दिल पे लिखी, तेरी हर इक अदा
अनमने ही सही, पर मिटाते रहे

अपने ही अक्स से, लग रहा डर हमे
आईने से सदा, मुह छिपाते रहे

बिन पते को जो, उसको लिखे थे कभी
उन खतों को
ऋषी
हम जलाते रहे

अनुराग सिंह "ऋषी"
16/05/2013

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